आसान सी जीत पाकर…!
हम कितने खुश हो जाते हैं…
खुद की उपलब्धि का,
किस्सा सबको सुनाते हैं…
शत्रु कितना रहा मजबूत…?
अतिशयोक्ति में ही बताते हैं….
चक्रव्यूह तोड़ने का हुनर…!
हमें बखूबी मालूम है,
ऐसा ही…लोगों से जताते हैं…
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जीवन के सफर में…
जब कोई…कहीं भी हारा…
अपनी किस्मत की ओर ही…!
धीरे से किया इशारा….
बताया थोड़ा गंभीर होकर,
अच्छी नहीं हो पाई तैयारी…
साथ ही क्या कहें मित्रों…!
नया प्रयोग मेरा…पड़ गया भारी..
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यह हार-जीत तो क्षणिक माया है
पूरी दुनिया पर ही देखो,
इस हार-जीत का साया है….
कभी हार,कभी जीत से ही…!
संतुलित है…आज भी दुनिया…
गौर से देखो तो जरा मित्रों…!
फिजूल का सोचने का मतलब
बस अपना ही…समय जाया है…
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जीवन का सफर….
कब हार-जीत पर है निर्भर…?
भरपूर आनन्द लो इसका,
मत करो जीना दूभर…!
इनका-उनका…और…खुद का…
बस इसीलिए मैं तो कहता यही…
जीत का दर्प…पालो नहीं…
हार को सर्प…मानो नहीं…
मंत्र बस यही जानो सही….!
मंत्र बस यही जानो सही….!
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रचनाकार…
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद–कासगंज