Category: साहित्य

अपनी रोटी सेंक लेते हैं….!

बड़े जतन से….!वह अपना चरित्र गढ़ता है,वह कभी भी…दूसरों पर….अपना दोष नहीं मढ़ता है….खुद में…किताब होता है वह…!इसी किताब को ही वह पढता है….चाहे कितना ही लोग कहें,कि उसमें अजीब…

आपदाओं से लड़ने की प्रेरणा थे बाबा, कितने प्यारे थे तुम

(फादर्स डे के अवसर पर पर कविवर तुषार जोशी की कविता पर आधारित, अपने पिता स्व किशोरमल लुंकड को समर्पित डॉ मंजू मंगलप्रभात लोढ़ा की यह कविता) धीरे से चलते…

निर्णय आपका…..!

सूचना….अबिलम्ब प्रेषित करें…इसके बाद…अगला दौर….सूचना के साथ..जरूरी कागज़ात कीकार्बन कॉपी संलग्न करें….फिर सूचना…लौटती डाक से….भेजने का कल्चर…आगे…सूचना के साथ प्रपत्रों की,छायाप्रति भी संलग्न करें…..इस दौर से गुज़रते हुए….!सूचना….जरिए विशेष वाहक….भेजने…

आप ही बताओ…..!

गाँव-देश और शहर-शहर,गली-गली और डगर-डगर….!हर तरफ़ का है यही हाल…स्कूलों से ज्यादा देखो,खुलते जा रहे अस्पताल….स्कूलों में अब तो…..!कम होते जा रहे हैं मास्टर,अस्पतालों में…अनायास ही…बढ़ते जा रहे हैं डॉक्टर…बढ़…

एक परीक्षा और सही…..!

चूँकि मैं बेरोजगार हूँ….!इसलिए….बेमुरौअत….बता सकता हूँ….इस बुरे दौर के….!अनुभवजन्य अज्ञात भय को,आशा और निराशा के द्वंद्व को,और गिना सकता हूँ…..!खुद को खरा सोना,साबित करने के लिए….बचपन से लेकर आज तक…!दी…

समरथ को नहिं दोष गुसाईं….!

गाँव-देश में अपने….!जीत के कोई बाजी…कुटिल हँसी जो हँसता है…और…लगातार…पान पर पान चबाता है….असली बाजीगर वह कहलाता है….जाने क्यों ऐसा लगता है कि…!संग बैठे और सभी से….सम्मोहन जैसा उसका कुछ…

कैसी ये कमाई है……!

मेहनत करके पद पाया,पाई इज्जत और प्रतिष्ठा….सुरूर चढ़ा कुछ ऐसा मन में,बलवती हुई…दबी सब ईच्छा…भूल गया सब मान-मनौती,भूला सब देवी-देवता….भूल गया था यह भी कि….!सब होती है प्रभु की ईच्छा….याद…

गुलाल लगाकर प्यार के इजहार का दिन – होली

व्यंग्य / डॉ. वागीश सारस्वत होली आती है। रंग बरसाती है। इस बार भी होली में तरह-तरह के रंग बरस रहे हैं। चुनरवालियां भीग रही हैं। होली के दिन बात…

संकल्पों की होली

–डॉ मंजू मंगल प्रभात लोढ़ा आओ लगा ले होली के रंग,टेसु में खिले प्यार के संग,पलास की सोंधी सोंधी सुवास में,झरते हरसिंगार के निर्झर में,डूबे हम भी होली के इंद्रधनुषी…

कुर्सी…..!

ज़माने में…..!आदमी वही सुखी और खुशनसीब हैजिसकी किस्मत में,कुर्सी….होती नसीब है….हालात भी कुछ अजीब हैं,हर कोई….चाहता है रहना…कुर्सी के करीब है….और….यह आदमी की जात है…सब जानते हैं अच्छे से,बिना कुर्सी…