Category: साहित्य

तुष्टि दर्शन के कारण ही….!

भले प्रयास हो मन से पूरा…या फिर हो…आधा और अधूरा..इस जग में सभी चाहते…!मिल जाए उनको…पूरा का पूरा…पर शाश्वत नियम प्रकृति का है यहमिलता नहीं यहाँ किसी को….!कुछ भी…पूरा का…

ई ससुरी जाड़ा…..!

सुना रे भैया….!बहुतै पढ़ावै ले पहाड़ा…ई ससुरी जाड़ा…कफ़-पित्त-वायु तीनों के,कई देवै ले ई गाढ़ा….बैद-हकीम सब इलाज़ बतावै,पिया गरम-गरम तू देसी काढ़ा….सुबह-शाम खूब मेहनत कै ला,घर-दुआर मन से झाड़ा…आउर…दरवाजे पर बारा…

बस मुण्डन मोर करा दो मैया…..!

मैया देख तनिक तो मुझको…!कितनो बड़ो ह्वै गयो हूँ मैया….पर….करि-करि चोटी तुम तो…छोरी बनाय दई हो मैया…सखा सकारे हास करत हैं,कैसे चराऊँ मैं गैया….?कूल कालिंदी जो मैं जाऊँ,या जाऊँ कभी…

कसम……!

मित्रों मानो मेरी बात….संसार में….कसम खाना….!कसम से…सबसे आसान…और…सबसे कठिन काम है…जान भी नहीं सका है कोई,अब तक कसम का असली मरम…मान्यताओं के अनुसार….!झूठी खाने पर कसम,व्यक्ति हो जाता है भसम….मित्रों…

फ़र्क बस इतना सा…..!

विकास का दौर है मित्रों…!“सुदामा” समाज में है ही नहीं….सबके पाँव में जूता-पनहीं है…और…सबके तन पर अच्छे-नए कपड़े….काँटे किसी को चुभते ही नहीं….मतलब साफ है कि कहावत….!जो ताको काँटा बुऐ…

अपनी रोटी सेंक लेते हैं….!

बड़े जतन से….!वह अपना चरित्र गढ़ता है,वह कभी भी…दूसरों पर….अपना दोष नहीं मढ़ता है….खुद में…किताब होता है वह…!इसी किताब को ही वह पढता है….चाहे कितना ही लोग कहें,कि उसमें अजीब…

आपदाओं से लड़ने की प्रेरणा थे बाबा, कितने प्यारे थे तुम

(फादर्स डे के अवसर पर पर कविवर तुषार जोशी की कविता पर आधारित, अपने पिता स्व किशोरमल लुंकड को समर्पित डॉ मंजू मंगलप्रभात लोढ़ा की यह कविता) धीरे से चलते…

निर्णय आपका…..!

सूचना….अबिलम्ब प्रेषित करें…इसके बाद…अगला दौर….सूचना के साथ..जरूरी कागज़ात कीकार्बन कॉपी संलग्न करें….फिर सूचना…लौटती डाक से….भेजने का कल्चर…आगे…सूचना के साथ प्रपत्रों की,छायाप्रति भी संलग्न करें…..इस दौर से गुज़रते हुए….!सूचना….जरिए विशेष वाहक….भेजने…

आप ही बताओ…..!

गाँव-देश और शहर-शहर,गली-गली और डगर-डगर….!हर तरफ़ का है यही हाल…स्कूलों से ज्यादा देखो,खुलते जा रहे अस्पताल….स्कूलों में अब तो…..!कम होते जा रहे हैं मास्टर,अस्पतालों में…अनायास ही…बढ़ते जा रहे हैं डॉक्टर…बढ़…

एक परीक्षा और सही…..!

चूँकि मैं बेरोजगार हूँ….!इसलिए….बेमुरौअत….बता सकता हूँ….इस बुरे दौर के….!अनुभवजन्य अज्ञात भय को,आशा और निराशा के द्वंद्व को,और गिना सकता हूँ…..!खुद को खरा सोना,साबित करने के लिए….बचपन से लेकर आज तक…!दी…