Category: साहित्य

नसीहत….!

अक्सर ही लोग कहते हैं…!तेजी से समाज बदल रहा है,रिश्ते बदल रहे हैं,विकास हो रहा है….ऐसे में हमारा भी फर्ज है….!देखें तो….घर-परिवार-समाज में….क्या-क्या परिवर्तन…?हो रहा दर्ज है…पहले तो…लोग कहते थे….बाप…

पहरे पर पहरा…..!

घरों के दरवाजे…..पहले तो…!खुले-खुले रहा करते थे…तथाकथित…कोई सभ्य मानव….टांग गया…घरों में परदा…उसके पास जाने क्या खजाना था,जिसे उसको छिपाना था….किसी ने पूछा तक भी नहीं…क्योंकि…?समाज में वही सबसे सयाना था….समय…

फ़रियाद……!

बहुत दिनों से….!मार्केट में….नहीं आया है….कोई जासूसी-तिलस्मी उपन्यास,किसी वर्दी वाले के…किस्से-कहानी..करिश्माई अंदाज वाला उपन्यास भीसच कहूँ तो….नहीं दिख रहे हैं…!मोटे-खुरदुरे पन्नों वाले पॉकेट बुक्स…लगता है…मय प्रकाशक-प्रकाशन…किसी कंप्यूटर वाले की….पॉकेट में…

जिन नैनन में नीर न दीखे…..!

सखी री…एहि सावन में…अच्छे-खासे….रूठ गए हैं बदरा….देखो तो….बिन बरखा के कारन…सूखे और चटख से हो गए हैं….मेरे नैनों के कज़रा….और….छोड़ रहे हैं ये तो पपड़ी-पपड़ा…बैरी बदरन के कारन ही….सखी री….सूख…

अपनी रोटी सेंक लेते हैं….!

बड़े जतन से….!वह अपना चरित्र गढ़ता है,वह कभी भी…दूसरों पर….अपना दोष नहीं मढ़ता है….खुद में…किताब होता है वह…!इसी किताब को ही वह पढता है….चाहे कितना ही लोग कहें,कि उसमें अजीब…

आपदाओं से लड़ने की प्रेरणा थे बाबा, कितने प्यारे थे तुम

(फादर्स डे के अवसर पर पर कविवर तुषार जोशी की कविता पर आधारित, अपने पिता स्व किशोरमल लुंकड को समर्पित डॉ मंजू मंगलप्रभात लोढ़ा की यह कविता) धीरे से चलते…

निर्णय आपका…..!

सूचना….अबिलम्ब प्रेषित करें…इसके बाद…अगला दौर….सूचना के साथ..जरूरी कागज़ात कीकार्बन कॉपी संलग्न करें….फिर सूचना…लौटती डाक से….भेजने का कल्चर…आगे…सूचना के साथ प्रपत्रों की,छायाप्रति भी संलग्न करें…..इस दौर से गुज़रते हुए….!सूचना….जरिए विशेष वाहक….भेजने…

आप ही बताओ…..!

गाँव-देश और शहर-शहर,गली-गली और डगर-डगर….!हर तरफ़ का है यही हाल…स्कूलों से ज्यादा देखो,खुलते जा रहे अस्पताल….स्कूलों में अब तो…..!कम होते जा रहे हैं मास्टर,अस्पतालों में…अनायास ही…बढ़ते जा रहे हैं डॉक्टर…बढ़…

एक परीक्षा और सही…..!

चूँकि मैं बेरोजगार हूँ….!इसलिए….बेमुरौअत….बता सकता हूँ….इस बुरे दौर के….!अनुभवजन्य अज्ञात भय को,आशा और निराशा के द्वंद्व को,और गिना सकता हूँ…..!खुद को खरा सोना,साबित करने के लिए….बचपन से लेकर आज तक…!दी…

समरथ को नहिं दोष गुसाईं….!

गाँव-देश में अपने….!जीत के कोई बाजी…कुटिल हँसी जो हँसता है…और…लगातार…पान पर पान चबाता है….असली बाजीगर वह कहलाता है….जाने क्यों ऐसा लगता है कि…!संग बैठे और सभी से….सम्मोहन जैसा उसका कुछ…