गाँव-देश में अपने….!
जीत के कोई बाजी…
कुटिल हँसी जो हँसता है…और…
लगातार…पान पर पान चबाता है….
असली बाजीगर वह कहलाता है….
जाने क्यों ऐसा लगता है कि…!
संग बैठे और सभी से….
सम्मोहन जैसा उसका कुछ नाता है…
इसीलिए तो उसका हर एक पत्ता….!
तुरूप का इक्का हो जाता है…फिर…
हर बाजी वह जीत भी जाता है…
वैसे तो दुनिया की यह रीति बुरी है…!
पर दाँव-पेंच की सबको छूट खुली है
हर कोई दिखे यहाँ….जुआ खेलता..
जिसमे मिलती जीत किसी को…और
कोई बाज़ी हार भी जाता है….
जो जीत गया बाजी को,
वही सिकन्दर कहलाता है….
हार लिखी जिसके भी मुक़द्दर,
चोर चतुर्दिक कहलाता है….पर…
सच कहूँ जो मैं मित्रों…
इस दुनिया में जादूगर…..!
हारे वाले को भी मानो…जो..
हार को मन से करके स्वीकार,
मजबूती से दम भरता है अगली बार..
इस आशा-प्रत्याशा में कि….!
कभी तो दिन उसके भी बहुरेंगे….
साबित होगा वह भी बेहतर सवार…
जयघोष चतुर्दिक होगा उसका….
ना कोई कहेगा तब उसको मूढ़-गँवार
हार-जीत की इस बाजी में….
एक गूढ़ बात और बताऊँ मित्रों…!
राजा जब ढोल बजाता है….
सामने उसके बाजी कौन लगाता है
ऐसे में तो….जीती बाजी भी….!
हर कोई खुद ही हार भी जाता है….
सामने जो कोई उसके आता,
कभी बैरी,कभी दुश्मन….या बस….
शत्रु प्रबल ही घोषित हो जाता है….
बस इसी कारण से मित्रों……
गाँव-देश में अपने…लोगों के मुँह से…
समरथ को नहिं दोष गुसाईं….!
हर ओर कहा जाता है…..
समरथ को नहिं दोष गुसाईं….!
हर ओर कहा जाता है…..
रचनाकार….
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर मुख्य उपायुक्त, लखनऊ