–डॉ वागीश सारस्वत

मुंबई। देश में बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के बीच जो सबसे ज्यादा पल्लवित और विकसित दिखाई दे रहा है– वह पाखंडी साधु और संतों की बढ़ती जमात है। देखते ही देखते गली छाप आदमी करोड़पति बन जाता है। इनकी धुआंधार कमाई के आगे बड़े-बड़े नेता और आईएएस अधिकारी फेल हैं। धार्मिक कवच और राजनीतिक संरक्षण के चलते ना तो इन्हें करोड़ों की कमाई का टैक्स चुकाना है और ना ही इन्हें ईडी, सीबीआई या आयकर विभाग के छापे का डर है। इनके मुखारविंद से भगवत भजन कम, घृणा ,नफरत और राजनीति के शब्द ज्यादा निकल रहे हैं। पूरी तरह से राजनीतिक हथियार के रूप में तब्दील हो चुके इन कथित संतों द्वारा दोनों हाथों से उसी धन-दौलत को बटोरने का काम निर्बाध रूप से किया जा रहा है,जिनको ये ईश्वर के मार्ग का रोड़ा बताते हैं। सरकार द्वारा लाइसेंस प्राप्त ये पाखंडी कहने के लिए तो लोगों के बीच जाकर सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं, परंतु जमीनी हकीकत कुछ और है। उनके पीए ( एजेंट) पहले लोगों से लिफाफे की बात करते हैं फिर उनके घर जाते हैं। यही कारण है कि ये पाखंडी संत सिर्फ धनवान लोगों के यहां ही जा रहे हैं, जहां आम आदमी दूर-दूर तक नजर नहीं आता। आम आदमी के मन में हिंदुत्व को लेकर जो भेदभाव रहित अवधारणा बनी हुई थी, वह पूरी तरह से टूटती हुआ नजर आ रही है। हिंदुत्व निरंतर कमजोर होता जा रहा है, क्योंकि हिंदू समाज का 70 प्रतिशत से अधिक वर्ग पाखंडी संतो की ड्रामेबाजी देखकर अपने आप को हिंदुत्व की परिधि से बाहर करता जा रहा है । इनको लाइसेंस देने वाले लोगों को इस गंभीरता का अंदाजा नहीं है कि आने वाले दिनों में यह उनके लिए भी बड़ा नुकसान करने जा रहे हैं। हिंदुत्व को संगठित करने की बात छोड़िए ये पाखंडी संत जातियों में भी अंतर जातियां पैदा कर रहे हैं।महाराष्ट्र संतों की भूमि रही है। संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर, संत रामदास जैसे महान संतों की परंपरा पूरी तरह से बिखर चुकी है। सरकारी जमीनों पर कब्जा करना, आसपास हथियारबंद सुरक्षा व्यवस्था रखना, आम आदमी को कोसों दूर रखना, किसी तरह का टैक्स न देना, अपने शिष्यों से हमले करवा देना, राष्ट्रीय आपदाओं में चुप्पी साध लेना, खुद का महिमा मंडन कराना, भगवान के नाम पर सारा चढ़ावा खुद लेना, महान धार्मिक ग्रंथों में भी कमी निकलना, राजनीतिक भविष्यवाणी करना जैसी अनेक आदतों के चलते ये पाखंडी संत सिर्फ एक विशेष वर्ग के ही भीतर अंधविश्वास फैलाने में सफल हो पा रहे हैं। बधाई देनी होगी आदिवासी ,दलितों और पिछड़े लोगों को जो इनके झांसे में नहीं आते और अपने पसीने की मेहनत की कमाई इन पर नहीं लुटाते।

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