मुंबई। श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण मनुष्य जीवन को सार्थक बनाती है। जन्म तो हर प्राणी एवं मनुष्य लेता है लेकिन उसे अपने जीवन का अर्थ बोध नहीं होता है। बाल्यावस्था से लेकर मृत्यु तक वह सांसारिक गतिविधियों में ही लिप्त होकर इस अमूल्य जीवन को नश्वर बना देता है। श्रीमद् भागवत ऐसी कथा है जो जीवन के उद्देश्य एवं दिशा को दर्शाती है। इसलिए जहां भी भागवत होते है इसे सुनने मात्र से वहां का संपूर्ण क्षेत्र दुष्ट प्रवृत्तियों से खत्म होकर सकारात्मक उर्जा से सशक्त हो जाता है।
उन्होंने कहा श्रीकृष्ण का जन्म मनुष्य जीवन के उद्धार के लिए हुआ है। कंस ने उनके जन्म लेने को रोकने के लिए अथक प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो पाया। अंत मेंं अपने पापों का घड़ा भरने पर श्रीकृष्ण के हाथों मरकर मोक्ष की प्राप्ति की। उन्होंने बताया मनुष्य जीवन सबसे उत्तम माना जाता है। इसी योनी में भगवान भी जन्म लेना चाहते हैं। जिससे वे अपने आराध्य ईश्वर की भक्ति कर सके। श्रीकृष्ण ने भागवत गीता के माध्यम से बुराई व सदाचार के बीच अंतर बताया। ईश्वर को धन दौलत व यज्ञों से कोई सरोकार नहीं है। वह तो केवल स्वच्छ मन से की गई आराधना के अधीन होता है।
स्वामी जी ने कहा कि ईश्वर जात, पात व धर्म नहीं जानते। वह तो भक्ति मात्र के प्रेम को जानते हैं। महाराज ने प्रवचन के दौरान हर प्रकार के युगों से श्रद्धालुओं को अवगत कराया। समय-समय पर भगवान को भी अपने भक्त की भक्ति के आगे झुककर सहायता के लिए आना पड़ा है। मित्रता, सदाचार, गुण, अवगुण, द्वेष सभी प्रकार के भावों को व्यक्त किया है। जब तक हम किसी चीज के महत्व को नहीं जानते तब तक उसके प्रति मन में श्रद्धा नहीं जगती। कहा कि जब तक भक्तों का मन पवित्र नहीं होगा तब तक भागवत कथा श्रवण का लाभ नहीं मिल सकता।
स्वामी जी ने कहा कि वेद शास्त्र पुराण और संत महात्माओं के वचनों और महाजनों के आचारों से यही सिद्ध होता है कि संसार धर्म पर ही प्रतिष्ठित है। धर्म से ही मनुष्य जीवन की सार्थकता है । धर्म ही मनुष्य को पापों से बचाकर उन्नत जीवन में प्रवेश करवाता है। धर्म बल से ही विपत्तिपूर्ण संसार और परलोक में जीव दुख के महावर्ण से पार उतर जा सकता है। हिंदू शास्त्रकार और संतों ने तो इन सिद्धांतों को बड़े ही जोर से घोषणा की है परंतु अन्य जातियों में भी धर्म को सदा ऊंचा स्थान मिलते आया है। सभी ने धर्म बल से ही अपने को बलवान समझा है। अब तक सब जगह यही माना गया है कि धर्म बिना मनुष्य का जीवन पशु जीवन सदृश हो जाता है।
स्वामी जी ने कथा के अंत में भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि आने वाला वर्ष 2024 भारत के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। भारत की धार्मिक स्थिति का स्वर्णकाल होगा 2024। उन्होंने यह भी कहा कि सनातन धर्म दुनियां के सभी धर्मों का उदगम स्थल है जो लोग भी सनातन धर्म के बारे में कुछ भी बोलते हैं वे उसके अधिकारी नहीं है इसलिए उनकी बातों से सनातन धर्म पर कोई असर होने वाला नहीं है। कार्यक्रम को सफल बनाने में ऐड जे डी सिंह, ओ पी सिंह, राम मणि मिश्रा, हरिश्चंद्र शुक्ला, दिनकर दूबे, गणेश सिंह आदि जुड़े हुए हैं। उक्त जानकारी काशीधर्मपीठ के प्रवक्ता प्रो दयानंद तिवारी ने दी है।