मुम्बई। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, क. जे. सोमैया परिसर, विद्याविहार में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन चाणक्य सभागार में किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में स्वा. रा.ती विद्यापीठ, नांदेड के मराठी विभाग के प्रमुख प्रो. पृथ्वीराज तौर ने कहा कि विभाजन विभीषिका के कारण भारत-पाकिस्तान ही नहीं विश्व के बहुत देशों में त्रासदी मची हुई है। मानवता को नष्ट किया जा रहा है। जिसको साहित्य और पत्रकारिता के माध्यम से मनुष्यता के संदेश से भीषण त्रासदी को रोका जा सकता है। विशिष्ट अतिथि के रूप में पूर्व राजभाषा अधिकारी डॉ. विश्वनाथ झा ने कहा कि दुःख पीड़ा, विभीषिका, काला अध्याय के रूप में व्यापक स्वरूप से पूर्व के समाज ने 1947 में अपने सामने देखी थी, वह पीड़ा इस समाज में पुनः दोहरायी जा रही है। हम सभी ने समय के साथ क्या खोया और क्या पाया यह चिन्तन का विषय है ? पीड़ा का दंश भारत के प्रत्येक क्षेत्र के नागरिकों ने अनुभव किया। मानव धर्म को धारण कर अपने कर्म को सकारात्मक दिशा में अपनाया जा सकता है। सारस्वत अतिथि के रूप में एस आई एस. महाविद्यालय, सायन, हिन्दी विभाग के प्रमुख डॉ. दिनेश पाठक ने कहा कि इस तरह की विभाजन जब समाज और राष्ट्र में होता है तो अपने पीछे भावी पीढ़ी को शिक्षा के क्षेत्र में आत्म मंथन के लिए छोड़ देता है। विभाजन सभी मनुष्य को मानवता के लिए पुनः पुनरावृत्त ना हो तो आनेवाले समय में मनुष्यता के लिए परिभाषा बनी रहेगी। जिसके कारण अपने देश को सामाजिक स्थिति को बनाए रखेगें और भारतीयता का बोध भी कराते रहेगें, यही हम सभी भारतीयों का कर्तव्य होना चाहिए । संगोष्ठी समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए परिसर के कार्यकारी निदेशक प्रो. बोध कुमार झा ने कहा कि विभीजन विभीषिका पर इस तरह की राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन होता रहना चाहिए। इस विषय पर जो मंथन हुआ वो भविष्य में विभीजन विभीषिका जैसी त्रासदी से मानवता को बचाएगा । ऐसी संगोष्ठियाँ भारत के लिए प्रेरणा स्रोत का काम सभी भारतीयों के लिए करेगी। हिन्दी व मराठी भाषा में 47 शोधपत्र प्रस्तुत किये गए । इस अवसर पर प्रस्तावना मराठी भाषा की संयोजिका, डॉ. मीनाक्षी बरहाटे ने, स्वागत हिन्दी भाषा की संयोजिका डॉ. गीता दूबे ने, धन्यवाद राजनीति विज्ञान के डॉ. रंजय कुमार सिंह ने, जबकि मंच संचालन साहित्य के डॉ. सोमेश बहुगुणा ने किया। समापन समारोह के अवसर पर सभी छात्र, कर्मचारी और शिक्षण गण उपस्थित थे ।

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