बहुत दिनों से….!
मार्केट में….नहीं आया है….
कोई जासूसी-तिलस्मी उपन्यास,
किसी वर्दी वाले के…किस्से-कहानी..
करिश्माई अंदाज वाला उपन्यास भी
सच कहूँ तो….नहीं दिख रहे हैं…!
मोटे-खुरदुरे पन्नों वाले पॉकेट बुक्स…
लगता है…मय प्रकाशक-प्रकाशन…
किसी कंप्यूटर वाले की….
पॉकेट में बंद हो गए हैं…..
लिखने वाले भी….अब तो….
यूट्यूब,सोशल मीडिया से,
भरपूर पाबंद हो गए हैं…..
कल्पनाएं उड़नतस्तरी सी हो गई हैं,
लेखकों को अब तो सपने नहीं आते
पाठकों को भी अब….!
किताबी जादू…. कत्तई नहीं सुहाता है
आभासी दुनिया में…देखिए तो सही..
उनको बहुत ही मजा आता है….
इस दौर में तो…खत्म सा हो गया है…
मुँह में पान-सुपारी घुलाते हुए,
मगन होकर तन्मयता के साथ…!
उपन्यास पढ़ने वालों का कल्चर…
वहीं यात्रा में….टाइम पास के लिए. ..
उपन्यासों को माँगने का चलन भी,
अब बीते जमाने की बात है….
और क्या कहूँ खुद ही गौर करो मित्रों
जो मजा खुरदुरे पन्नों में था,
उनको तहजीब से पलटने में था,
रात में सोने से पहले….!
पन्ना मोड देने में था…..
अब वह आनन्द कहाँ….?
वह आतुर सा भाव कहाँ….?
सच मानो…उपहास मत मानो मित्रों..
पॉकेट बुक्स वाले पन्ने…उनके फ़ॉन्ट..
और तो और…उनकी गन्ध भी…
अभी तो….नहीं कोई भूला है….
सब कुछ…पब्लिक को याद है…
इसलिये….लेखकों मैदान में आओ…
एक नई क्रान्ति लाओ….
उपन्यासों की इस बुझ रही लौ को…
फिर क़ायदे से जलाओ…
यह मेरी आपसे फ़रियाद है….
यह मेरी आपसे फ़रियाद है….

रचनाकार….
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ

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