घरों के दरवाजे…..पहले तो…!
खुले-खुले रहा करते थे…
तथाकथित…कोई सभ्य मानव….
टांग गया…घरों में परदा…
उसके पास जाने क्या खजाना था,
जिसे उसको छिपाना था….
किसी ने पूछा तक भी नहीं…क्योंकि…?
समाज में वही सबसे सयाना था….
समय के साथ….आगे के लोग….
जाने किस विकास की दौड़ में…?
घरों में कुत्ते भी पालने लगे,
दरवाजे पर लिखने लगे….
कुत्तों से सावधान….!
एक बारगी सोचने का विषय,
घर में कुत्ते ही रहते हैं….शायद.…!
पर गौर से देखो तो मतलब साफ था
इसी बहाने चढ़ गया था….
परदे पर भी एक पहरा…..
छिपा हुआ खजाना….!
दब गया था….और भी गहरा….
अब तो….कम भी हो गया लोगों का…
डेहरी पर आना-जाना….
ये कुत्ता भी तो….मिल गया था….
एक अच्छा सा बहाना….
जरा देखिए तो अब के नए चलन में…
दरो-दीवार के….हर कोने में…
लग गया है…सी सी टी वी कैमरा….!
सावधान….आप कैमरे की नजर में हैं
लिख गया है के चहुँओर….
दसों दिशाओं से….!
आप कैमरे में कैद हो…
रिकॉर्ड हो रहा है जिसमें,
आपका नख-शिख,पोर-पोर…
समझो तो सही प्यारे….!
राज इसमें है बहुत ही गहरा….
कायदे से देखो तो सही….
परदे पर…और….कुत्ते पर भी….
चढ़ गया है एक पहरा…
मित्रों वैसे तो…..परिवर्तन….!
गतिशील समाज का लक्षण है…पर…
क्या कहूँ….सच तो यह है कि…
मनुष्य का स्वभाव ही है….संशय….
सुरक्षा और संदेह से….!
नाता है उसका बेहद गहरा….
बस इसीलिए वह…चढ़ाये जा रहा है
बढ़ाये जा रहा है…. खुद ही पे….!
पहरे पर पहरा….पहरे पर पहरा….
रचनाकार….
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त,लखनऊ