लेखक- डॉ आशीष तिवारी

संगीत की स्वर लहरियों में संसार को मोहित कर देने वाला , सुरों की बहती गंगा में आत्मा को डुबो देने वाला, गायकी के पवित्र मंदिर में ईश्वर से साक्षात्कार करा देने वाला और सारी दुनिया को अपने गले की अद्भुत कारीगरी से अचेत कर देने वाला अगर कोई संगीत का फरिश्ता धरती पर उतर कर आया वो मोहम्मद रफी ही थे।

आज के दिन ठीक सौ साल पहले 24 दिसंबर सन् 1924 को आज के पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के कोटला सुल्तान सिंह प्रांत में जन्मा एक बच्चा जिसका नाम फीको था उसे दुनिया ने मोहम्मद रफी के नाम से जाना । रफ़ी साहब ने अपने 35 साल के समृद्ध करियर में विभिन्न भाषाओं जैसे हिंदी, उर्दू, पंजाबी, कोंकणी,भोजपुरी और मराठी आदि भाषाओं में लगभग 7,000 गाने गाए ।

वो गायकी के एक ऐसे धुरंधर कलाकार थे जिससे कोई भी संगीतकार अपनी धुनों को हूबहू निकलवा लेता था और क्रियेटिविटी के धरातल पर संतुष्टि के चरम पर पहुंच जाता था । अगर पूछा जाये तो एक बड़े से बड़ा संगीतकार भी उनका एक सबसे अच्छा गाना ढ़ूंढ़ने में नाकाम हो जायेगा । इसलिए हम भी सबसे अच्छा गाना ढ़ूंढ़ने की गुस्ताखी नहीं करेंगे बल्कि उनके महानतम गानों में से कुछ की चर्चा करने की कोशिश करेंगे ।

“सूरज” फिल्म का यह गाना “बहारों फूल बरसाओ” इतना लोकप्रिय है कि हर विवाह में इसके बजे बिना मानो विवाह अधूरा रह जाये । वहीं “नीलकमल” फिल्म का यह गाना “बाबुल की दुखायें लेती जा” भी हर बिदाई के समय बजना तय है । मोहब्बत के सुरूर में आकंठ डूबा फिल्म कन्यादान का यह गाना “लिखे जो खत तुझे” मानो अपनी महबूबा को लिखे रूमानी खतों की आसमानी दास्तान सुनाता जा रहा हो ।

फिल्म का “चा चा चा” का गीत “खुशी जिसने खोजी वो धन लेके लौटा” एक प्रेमी के अपनी प्रेमिका से बिछोह के उस बेइंतेहा दर्द को इस शिद्दत से पेश करता है जिसकी आंच हमारे दिल तक महसूस होती है । फिल्म ब्रह्मचारी का “मैं गाऊं तुम सो जाओ” इतनी मिठास भरी लोरी भला कोई गा सकता है । फिल्म कोहिनूर का यह क्लासिकल गाना मधुवन में राधिका नाची ” बेमिसाल है । सुरों के पक्के तो बहुत से गायक हैं पर सुरों को सुरीली आवाज़ में शहद की मिठास के संग पेश करना केवल रफी साहब के वश की बात थी । फिल्म बैजू बावरा का अमर भजन “मन तरपत हरि दर्शन को आज ” सर्वश्रेष्ठ भजन गीतों में एक हैं जिसमें रफी साहब ने अपने गले से जो स्वर प्रस्फुटित किए वो सीधे ईश्वर तक पहुंच गये होंगे । अंत में एक बेहद संवेदनशील गाने का उल्लेख करना चाहूंगा फिल्म फिल्म गाइड का अमर गाना “तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं” इसका वो अंतरा याद रखिये “लाख मना ले दुनिया साथ न ये छूटेगा” । एक मखमली आवाज़ दिल की गहराईयों में हमेशा के लिए ठहर जाती है और प्रीत की सतरंगी गलियों में प्रियतमा के संग सात जन्मों के बंधन का कोमल अहसास देती है ।

रफी़ साहब की आवाज़ हमारे जीवन का एक अटूट हिस्सा बन गयी है । हमने उन्हें भले देखा न हो पर महसूस जरूर किया है । जिसे खुद ईश्वर ने अपने हाथों से गढ़ा हो वो आसमान से आया फरिश्ता यूँ तो वापस चला गया पर उसकी जादुई आवाज इस धरती पर हमेशा रहेगी । हमारे साथ भी हमारे बाद भी ।

(इस फिल्म समीक्षा के लेखक मुंबई के प्रसिद्ध चिकित्सक डा.आशीष तिवारी हैं जो बांबे हास्पिटल, उमराव वोक्हार्ट हास्पीटल, जाइनोवा हास्पीटल जैसे अनेक अस्पतालों संबद्ध रहे हैं ।)

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