वर्तमान समय को ‘एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) युग’ के रूप में देखा जा रहा है | समय की बचत और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए दुनिया के लगभग सभी क्षेत्र इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं | कृत्रिम बुद्धिमत्ता में जमकर निवेश हो रहा है | शिक्षा जगत भी इससे अछूता नहीं है | करोनाकाल में ज़ूम, गूगल, कहुत आदि एप्स का जमकर प्रयोग हुआ | व्यापार, शिक्षा, राजनीति, अर्थव्यवस्था आदि सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध हो गईं | वहीं अब एआई की धमक महसूस की जा रही है | प्रस्तुत लेख एआई की सीमाओं पर केंद्रित है | ये सीमाएं ही हैं जो हमें सतर्क और सावधान करती हैं |

आजकल चैट जीपीटी का प्रयोग अध्यापक एवं छात्र जमकर कर रहे हैं | परियोजना कार्य, वाद विवाद, गृह कार्य, चित्रकला, क्रीडा, हस्तकला आदि में इसका सहारा लिया जा रहा है | नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी एआई का पठन-पाठन प्रारंभ हो चुका है | लोग कयास लगा रहे हैं कि भविष्य में एआई शिक्षकों की जगह ले लेगा | यह निर्विवाद है कि एआई हमारे काम को सुगम तो बना दिया है लेकिन कहीं न कहीं छात्रों की रचनात्मकता को मार रहा है क्योंकि उनका रचनात्मक कार्य एआई कर रहा है | बच्चे अपनी जिम्मेदारी के लिए पूरी तरह इस पर निर्भर हो रहे हैं | एआई की ओर से उन्हें जो भी परोसा जा रहा है उसे आंख बंद करके अपना रहे हैं | उन्हें यह ज्ञात नहीं है कि शायद जीपीटी जैसे ऐप भ्रामक जानकारी दे रहे हैं | ऐसे में अध्यापकों का उत्तरदायित्व दुगुना हो जाता है | उन्हें एआई से प्राप्त आँकड़े, तथ्य, सर्वेक्षण, प्रमाण आदि की पुनः जांच करनी होगी, अन्यथा नई पीढ़ी को किसी भी विषय का पूरा ज्ञान प्राप्त नहीं होगा | कहा गया है अधूरा ज्ञान विनाश की ओर ले जाता है | इस संदर्भ में बेंगलुरु की एआई रिसोर्सपर्सन श्रीमती चारुमति देसाई कहती हैं, ‘इसका प्रयोग करके शिक्षक अपने अधिगम को रुचिकर एवं ग्राह्य बना सकते हैं | यह शिक्षा-जगत के लिए वरदान है |’ जबकि एआई के इस्तेमाल पर शिक्षकों की मिली-जुली राय है | मुंबई के वरिष्ठ शिक्षक श्री दिनेश सिंह का कहना है, “रचनात्मकता और भावनात्मक पहलू के साथ साथ नैतिक मूल्यों का अभाव एआई के उपयोग की सबसे बड़ी चुनौती है । इससे बहुत से क्षेत्रों में बेरोज़गारी बढ़ेगी । इस तकनीक पर वर्ग विशेष का वर्चस्व होगा।”
अमेरिका के ‘द इकोनॉमिस्ट’ के अनुसार कृत्रिम बुद्धिमत्ता में निवेश करने वाले कई फर्म घाटे में चल रहे हैं | बैंकिंग, हेल्थ केयर जैसे सेक्टर, जिन्हें लग रहा था कि एआई की वजह से उनका कारोबार आसान होगा लेकिन वे घाटे में है | उनमें नौकरियों के मौके कम हो रहे हैं | अमेरिका में कंपनियों का इंडेक्स एसएंडपी 500 करीब 20% चढ़ा है, इनमें वही कंपनियां हैं जिनमें एआई का ज्यादा हस्तक्षेप नहीं है | वहीं अमेजन, एप्पल जैसी एआई आधारित टेक कंपनियों ने मुनाफा कमाया है | केमिस्ट चेन सीवीएस हेल्थ और यूबीएस बैंक जैसी वित्तीय संस्थाओं के कुल मुनाफा में कमी आई है, यहां लगभग 5000 कर्मचारियों को अपनी नौकरी खोनी पड़ी | अब धीरे-धीरे एआई के प्रयोग का स्याह सच बाहर आने लगा है | गूगल एल्गोरिदम और सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन के अनुसार कुछ मेडिकल संस्थान अपना पोस्ट लिखवाने के लिए एआई का प्रयोग कर रहे हैं | गूगल एल्गोरिदम विशेषज्ञ मेरी हेन्स का कहना है कि भारी मात्रा में कंटेंट बनाकर नाव मेडिकल गूगल को भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहा है कि कुछ विषयों में उसकी विशेषज्ञता है | एआई का दुरुपयोग करके लाखों पेज कचरा कंटेंट जनरेट किया जा रहा है | ये कंटेंट गूगल पर गलत जानकारी फैला रहे हैं | ऐसे में एआई से संबंधित अंतरराष्ट्रीय साइबर कानून की महती आवश्यकता है|
एक बहुश्रुत कथन है, ‘विज्ञान एक अच्छा नौकर, किंतु बुरा मालिक है|’ कृत्रिम बुद्धिमत्ता में सब साधु-साधु नहीं है | कुछ ऐसी हानियाँ भी हैं जिन पर ध्यान देकर हम इस तकनीकी का सदुपयोग कर सकते हैं | प्रत्येक भौतिक साधन का प्रयोग मानव- कल्याण को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए| स्वार्थ, अतिशय महत्वाकांक्षा, लालच आदि के वशीभूत होकर किया गया कार्य मानवता के हित में नहीं है | महाकवि जयशंकर प्रसाद जी ने ठीक ही लिखा है – ” अपने में सब कुछ भर कैसे/व्यक्ति विकास करेगा/ यह एकांत स्वार्थ भीषण है/अपना नाश करेगा |” अस्तु |

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