जौनपुर । साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था कोशिश की मासिक गोष्ठी बाबू रामेश्वर प्रसाद सिंह हाल रासमंडल जौनपुर में रविवार 20 जुलाई को स्वतन्त्रता का अमृत महोत्सव विषय पर आयोजित की गई।वाणी वंदना के पश्चात गिरीश कुमार गिरीश का मुक्तक- रौशनी हूं मैं सिर्फ तम खा कर, ज़िन्दगी जी रहा हूं गम खाकर,दे रहा है दिलासा दोस्त मेरा/मुझसे, झूठी मेरी कसम खाकर—विश्वास के संकट की ओर संकेत कर गया।अशोक मिश्र का गीत—साधो कौन खरीदे दर्पन/यह अंधों का गाँव है–छीजते मानवीय मूल्यों पर चोट कर गया। वहीं रामजीत मिश्र की रचना—जांचने के लिए आदमी का जहर–व्याप्त संवेदनहीनता पर प्रहार कर गई।व्यंग्य के सिद्धहस्त कवि सभाजीत द्विवेदी प्रखर की पंक्तियाँ–आजादी की बलिवेदी पर अपना शीश उतारा था–राष्ट्रीय भावना जगा गई। प्रेम जौनपुरी का शेर–वो प्रेम थे नफरत से जहां देख रहा है/ये प्रेम तो बस दिल में बसाने के लिए था। जनार्दन अष्ठाना का गीत–भूल पाऊं मैं कैसे भला,याद तेरी सँवारा करूं– विरहिन की वेदना को उकेर गया। अंसार जौनपुरी की पंक्ति—पैगामे मोहब्बत में भी खंजर निकल आए–खूब पसंद किया गया।गोष्ठी में फूल चंद भारती ,अनिल उपाध्याय,अमृत प्रकाश,राजेश पांडेय,नंद लाल समीर,सुशीलदुबे,ओ.पी.खरे, शोहरत जौनपुरी ने अपने काव्य-पाठ से श्रोताओं को आह्लादित किया। संजय सेठ, सुरेंद्र यादव की विशेष उपस्थिति रही। अध्यक्षता प्रेम जौनपुरी ने की और संचालन अशोक मिश्र ने किया।

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