कल्याण ।आदमी का जन्म तो सहज होता है परंतु आध्यात्मिक जfगत में प्रवेश करना, उसके संचित कर्मों के फल स्वरुप ही होता है। आध्यात्मिक जगत में एक महान संत के रूप में प्रतिष्ठित धारकुंडी आश्रम के स्वामीजी महाराज के प्रिय शिष्य श्री श्री 1008 स्वामी दिव्यानंद (दुबे महाराज) के निधन की खबर मिलते ही, उनके लाखों शिष्यों में शोक की लहर दौड़ गई। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सिकरी जनपद स्थित उनके परमहंस आश्रम, साथा परिसर में शिष्यों ने पूरी श्रद्धा के साथ उनको समाधि दी। यूपी के जौनपुर जनपद स्थित दौलतपुर गांव में पैदा हुए स्वामी दिव्यानंद बचपन में बहुत ही मेधावी विद्यार्थी रहे। मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। यही कारण था कि छात्र जीवन के बाद उन्हें तत्काल रेलवे में नौकरी मिल गई। मानिकपुर रेलवे स्टेशन पर उनकी नियुक्ति हो गई। बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के रहने के कारण वे जल्द ही अनुसूया आश्रम, चित्रकूट के महान संत श्री स्वामी परमानंद महराज से भक्त के रूप में जुड़ गए। वहां से उनका झुकाव धारकुंडी आश्रम,सतना के परमहंस श्री स्वामी सच्चिदानंद जी महराज की तरफ हुआ। वे उनकी शरण में आ गए। आध्यात्मिक जगत में प्रवेश करने के बाद उन्होंने रेलवे की नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से भागवत भजन में रम गए। कल्याण के उनके भक्त ओमकार शेषनाथ पांडे के अनुसार दूबे महाराज में विलक्षण प्रतिभा थी। वे वेद, पुराण, भागवत, रामायण, गीता के ज्ञाता थे तथा उन्हें कंठस्थ था। उन्होंने कहा कि उनका संसार से जाना बहुत बड़ी सांसारिक और आध्यात्मिक क्षति है।

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