Category: साहित्य

कैसी ये कमाई है……!

मेहनत करके पद पाया,पाई इज्जत और प्रतिष्ठा….सुरूर चढ़ा कुछ ऐसा मन में,बलवती हुई…दबी सब ईच्छा…भूल गया सब मान-मनौती,भूला सब देवी-देवता….भूल गया था यह भी कि….!सब होती है प्रभु की ईच्छा….याद…

गुलाल लगाकर प्यार के इजहार का दिन – होली

व्यंग्य / डॉ. वागीश सारस्वत होली आती है। रंग बरसाती है। इस बार भी होली में तरह-तरह के रंग बरस रहे हैं। चुनरवालियां भीग रही हैं। होली के दिन बात…

संकल्पों की होली

–डॉ मंजू मंगल प्रभात लोढ़ा आओ लगा ले होली के रंग,टेसु में खिले प्यार के संग,पलास की सोंधी सोंधी सुवास में,झरते हरसिंगार के निर्झर में,डूबे हम भी होली के इंद्रधनुषी…

कुर्सी…..!

ज़माने में…..!आदमी वही सुखी और खुशनसीब हैजिसकी किस्मत में,कुर्सी….होती नसीब है….हालात भी कुछ अजीब हैं,हर कोई….चाहता है रहना…कुर्सी के करीब है….और….यह आदमी की जात है…सब जानते हैं अच्छे से,बिना कुर्सी…

नई पीढ़ी तो बड़ी हाईटेक है….!

मित्रों मन की बात बताऊँ….!वर्तमान में नई पीढ़ी तो,संदेह के दौर में जी रही है…सुबूत रखना चाहती है,समय पर गड़े मुर्दे उखाड़ने को…इंडाईरेक्टली….!अपने प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ने को….साथ ही….उनको बताने को…भूली…

अयोध्या नगरी…..!

मित्रों मानो मेरी बात….मिल रही है हम सबको,जो अयोध्या की अद्भुत सी सौगात,कई सदियों के संघर्षों के बाद…यों तो….नई पीढ़ी के लिए…!कौतूहल का ही….विषय रही बड़ी…अयोध्या नगरी,प्रभु राम…और….अयोध्या की हनुमानगढ़ी…पर…!कुछ…

कोई ब्रह्मराक्षस न बने

मध्यम वर्ग का व्यक्ति….कभी खा नहीं पाता है,मन-माफ़िक़ स्वादिष्ट व्यंजन….कभी पहन नहीं पाता है,ब्रांडेड-फैशनबल कपड़े…खरीद नहीं पाता है,बच्चों के लिए नए-नए खिलौने…ठहर नहीं पाता है,कभी महँगे होटल में…पढ़ा नहीं पाता…

कुम्हार अलग कुछ गढ़ने वाला..

ढूढ़ता हूं मैं आजकल….!बिन मतलब के,झूठ-सच बकने वाला…नमक-मिर्च लगाकर,बल-बल बातें कहने वाला,अलबेला… वाचाल… बड़बोला….सच कहूँ तो…!नाना के आगे ही नानी के,गुणगान-बखान करने वाला…नकलची… बातूनी… मुँह बोला….कुछ किस्सा-कहनी कहने वाला,चुलबुली सी…

मैं कोई अजर-अमर हूँ थोड़े…!

जीवन में जितने भी आए…!कंकड़-पत्थर या फिर रोड़े….तेरे ख़ातिर….बस तेरे ही ख़ातिर….मैंने खुद ही उनको फोड़े….नादाँ हो…तुम क्या जानो…?जाने कितने रिश्ते-नाते,तेरे ख़ातिर….बस तेरे ही ख़ातिर…मैंने खुद ही आगे जाकर तोड़े…कैसे…

गाँव-गाँव, शहर-शहर. गली-गली और डगर-डगर. मैं ढूँढता हूँ अक्सर…!

गाँव-गाँव, शहर-शहर….गली-गली और डगर-डगर…मैं ढूँढता हूँ अक्सर…!एक ऐसा शख़्श,जिसकी आँखों में…हर पल नाच रहा हो,बस परिवार का अक्स…जिसके दरवाजे पर होने से,सजती रहती है महफिल…घर में… बनी रहती है हलचल…हर…